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Opinion: दिल्ली चुनाव को लेकर एग्जिट पोल के नतीजे मानने की है खास वजह, 27 साल बाद खिल सकता है कमल

दिल्ली चुनाव के बाद जिन 70 विधानसभा सीटों एग्जिट पोल के नतीजे आए, हो सकता है कि जब परिणाम आए तो उसका नतीजा उलट भी आए. केजरीवाल के पक्ष में दिल्ली की महिलाओं का वोट  काफी संख्या में गया है, इसलिए असली आंकड़ा परिणाम के बाद पता चलेगा, लेकिन एग्जिट पोल की मानें तो उस हिसाब से अगर आम आदमी पार्टी की सत्ता अगर दिल्ली से जा रही है तो उसकी वजह रहेगी पूर्वांचली वोटों का बंटना और कांग्रेस के मजबूती से लड़ने के चलते त्रिकोणीय मुकाबला.

दरअसल, पूर्वांचल के वोटर का दिल्ली की कई सीटों पर अच्छा-खासा प्रभाव है. उन सीटों पर जीत-हार का समीकरण ही वे तय करते हैं. ऐसे में इस बार के चुनाव में पूर्वांचली के वोटरों का बंटवारा देखा गया. पूर्वांचल के मतदाताओं ने बीजेपी के साथ ही आम आदमी पार्टी और कांग्रेस यानी तीनों दलों को वोट किया है.

एग्जिट पोल के हिसाब से कांग्रेस को 5 से 8 सीटें भी अगर मिलती है तो ये काफी अहम रहेगा. मुस्तफाबाद, सीलमपुर जैसी कई मुस्लिम बहुल सीटें हैं, जहां पर कांग्रेस की जीत की पूरी संभावना है. पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 67 सीटें मिली थी, ऐसे में बीजेपी का कितना भी वोट प्रतिशत बढ़ जाएगा, उस सूरत में भी 8 से उसे 12 या फिर 32-33 सीटें ही मिल सकती हैं.

दिल्ली में बड़ा उलट-फेर?

इस स्थिति में भी बीजेपी के मुकाबले आम आदमी पार्टी को 2 से 3 सीट ज्यादा ही आएगी. इसके साथ ही, अगर कांग्रेस 7-8 सीटें लेकर आती है तो ऐसा भी हो सकता है कि एक बार फिर से कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मिलजुल कर दिल्ली में सरकार बना ले. दिल्ली के पैटर्न की बात करें तो वो भी बिल्कुल अलग है. अगर आप पूर्व दिल्ली की बात करें तो वहां पर सिर्फ आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच मुकाबला दिखा है.

ओखला को काफी हॉट सीट माना जा रहा है. लेकिन वहां पर मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. यहां पर पिछले 10 साल से आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्ला खान हैं, लेकिन यहां पर वोट का पैटर्न एआईआईएम के उम्मीदवार शफीकुर्रहमान बिगाड़ सकते हैं जो पिछले लंबे वक्त से तिहाड़ जेल में बंद हैं. उन्हें सहानुभूति वोट काफी मिला है

हालत वहां पर ये देखने को मिली कि जहां अमानतुल्ला का गढ़ है बाटला हाउस और जाकिर नगर, वहां पर भी एआईएमआईएम के उम्मीदवार को वोट मिलता हुआ नजर आया. यानी, यहां पर काफी वोट आम आदमी पार्टी का एआईएमआईएम ने काटा है. शाहीन बाग में कांग्रेस को भी लोगों ने वोट दिया है. जबकि, ओवैसी की पार्टी के खाते में भी वोट गया और केजरीवाल की पार्टी को भी वोट गया.

दिल्ली में बदला वोट का पैटर्न

जब आप इन इलाकों से बाहर निकलकर जैतपुर, बदरपुर और अन्य इलाकों का रुख करते हैं, जहां पर मुस्लिम आबादी न के बराबर है या फिर थोड़ी है, वहां पर सीधा आम आदमी पार्टी का मुकाबला बीजेपी के साथ है. हो सकता है कि थोड़े बहुत वोट वहां पर आम आदमी पार्टी को भी मिले. यानी, ये चुनाव इस बार त्रिकोणीय मुकाबले के तौर पर दिखा है. ऐसे में इस त्रिकोणीय मुकाबले का फायदी बीजेपी को मिलता दिखाई दे रहा है.

कुछ ऐसी भी शिकायतें मिली की जिस तरह से पुलिस ने दिल्ली के चारों तरफ नाकेबंदी की, कई लोगों के आधार कार्ड देखकर उन्हें रोका गया, जिसकी शिकायतें भी की गई. कुछ ऐसे भी मामले आए जहां पर एक खास समुदाय के करीब 200 लोगों को उनकी ऊंगली पर निशान लगाकर बिना वोट वापस भेज दिया गया.

खैर पहले जब बैलट पेपर पर चुनाव होता था, उस वक्त बूथ कब्जे की खबर आती थी. उसी तरह से अब मैनुपुलेट करने की खबरें आती हैं, लेकिन नतीजे तो आखिकर सभी को मानने ही होते हैं. किसने वोट नहीं दिया, किसने वोट क्यों नहीं दिया, किसका मतदान से नाम गायब हो गया, इन चीजों की शिकायतें तो आती रहती है. अंतिम में नतीजा ही मान्य होता है. फिर जिसकी भी सरकार बनती है, इन शिकायतों पर आगे चलकर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है.

मुस्लिम वोटर की नाराजगी

केजरीवाल पर एक और इल्जाम ये लगा कि जो मुस्लिम मतदाताओं का जो क्षेत्र है, वहा पर केजरीवाल एक बार भी नहीं गए, वोट मांगने के लिए. इसके साथ ही, कोविड के दौरान निजामुद्दीन में तबलीगी जमात पर केजरीवाल के दिए बयान को भी सोशल मीडिया पर लोगों की तरफ से वायरल किया गया है. इन दोनों ही चीजों से कहीं न कहीं मुस्लिम मतदाता केजरीवाल से नाराज हुए हैं और आम आदमी पार्टी छोड़कर किसी और पार्टी को वोट किया है.

दिल्ली की जितनी भी विधानसभाएं हैं, उन सभी में 10 से 15 हजार के करीब मुस्लिम मतदाता हर क्षेत्र में है. ऐसे में ये वोट अगर आम आदमी पार्टी को नहीं जाएगा तो फिर वो कांग्रेस के खाते में जाएगा. बीजेपी की अक्सर राजनीति धर्म पर आ जाती है, यही वजह है कि बीजेपी से ये समुदाय दूरी बनाकर रखने की कोशिश करती है. सर्वे में ये भी आया कि दलित समुदाय की अच्छा खासा वोट आम आदमी पार्टी से इस बार खिसक रहा है.

ऐसे में कांग्रेस की कोशिश अपने पुराने वोटों को गोलबंद करने की है. इस चुनाव में भी कांग्रेस की ये कोशिश थी कि दलित और मुस्लिम वोट को एकजुट करें. इस हालत में अगर कांग्रेस की 5 से लेकर 8 सीटें आती है तो इसमें किसी को हौरानी नहीं होनी चाहिए. आठ फरवरी को दिल्ली चुनाव के अंतिम नतीजे सामने आ जाएंगे. लेकिन ये तय है कि लड़ाई आम आदमी पार्टी के लिए काफी चुनौतीभरी रही.

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